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2014 के जंग की घुटने लगी भंग

रेड फाइल
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आगामी लोकसभा चुनाव की जंग को लेकर लगभग सभी राजनीतिक दल अपना अपना गुणा भाग बैठाने मेजुट गए हैं !देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में राजनीतिक तापमान दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. अभी से ही चौक-चौराहों और सरकारी दफ्तरों में राजनीतिक चर्चाओं का माहौल गरमाने लगा है! हालांकि चुनाव में अभी समय हैलेकिन इस जंग की भंग हर राजनीतिक दल घोंटनेमें जुट गये है। 2014 को लक्ष्य मान फतह की तैयारी में जुटी समाजवादी पार्टी भी बीते विधानसभा चुनाव की भांति ही फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के पहले ही संगठन को पूरी तरह दुरुस्त कर सक्रिय व कर्मठ कार्यकर्ताओं को बड़ी जिम्मेदारी सौंपने की कवायद शुरू कर दी गई है।गौरतलब तो यह है कि संगठनात्मक फेरबदल की पहल खुद सपा के प्रदेश अध्यक्ष व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कर रहे है।पार्टी रणनीतिकारों की माने तो फ्रंटल और युवा संगठनों के साथ ही प्रकोष्ठों में भी बड़े स्तर पर बदलाव हाने की संभावना है।चर्चा है सूबे की राजधानी लखनऊ के मध्य विधानसभा क्षेत्र के अध्यक्ष शाकिर सिद्दीकी को जो की विगत करीब 20 सालों से पार्टी के समर्पित कार्यकर्तां के रूप में जाने जाते रहे है को हटाकर उनके स्थान पर बाबू लाल इलाहाबादी को अध्यक्ष बना दिया गया है जिसको लेकर न केवल सक्रिय कार्यकर्ताओं में ही रोस है बल्कि मुस्लिम कार्यकर्ता भी इस खबर को सुनकर हतप्रभ है। बताते चले की साकिर सिद्दीकी के बारे में लोग यहाँ तक कयास लगाने में जुटे थे की श्री सिद्दीकी को किसी न किसी निगम का अध्यक्ष या उपाध्यक्ष बनाया जा सकता है ! असल में विधानसभा चुनाव के बाद से महज युवा संगठनों को भंग करने के बाद पार्टी ने संगठन में फिलहाल फेरबदल की प्रक्रिया को रोक रखा था। अब चूंकि लोकसभा चुनाव करीब है और खुद सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव भी साफ कह चुके हैं कि उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 60 से 70 सीटों पर विजय पताका फहराये बिना केन्द्र में सरकार बनाना आसान नहीं होगा। यही वजह है कि सपा मुखिया का यह बयान आने के साथ ही संगठन में फेरबदल की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। बताया जाता है की श्री सिद्दीकी के अध्यक्ष रहते ही मध्य विधान सभा से मौजूदा विधायक रविदास मेहरोत्रा को भारी मतों से विजय भी हासिल हुई थी! भाजपा इस बार चुनाव में कोई बड़ा उलटफेर करने की फिराक में है, इसलिए उसके रणनीतिकार बाहर से ऊर्जा लाकर पार्टी में जोश फूंकने के जुगाड़ में है। राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह इस बार फिर राम मंदिर का मुद्दा जनता के बीच रखकर प्रतिद्वन्दियों कोमात देने की तैयारी में है। देश अनेक ज्वलंत समस्याओं से जूझ रहा है ! भ्रष्टाचार महंगाई पानी बिजली सुरक्षा आदि पर किसी सार्थक पहल की बात नहीं हो रही है बल्कि मंदिर की बात हो रही है ! गोया एक मंदिर बन जाने से ये तमाम परेशानियां स्वतः दूर हो जायेंगी ! भाजपा भी भटकाववादी बातें कर येन.केन.प्रकारेण सत्ता में आने की जुगत में है ! अन्ना आन्दोलन के समय जब जन लोकपाल की मांग के लिए समग्र देश एकजुट होकर सड़क पर उतर रहा था उस समय भाजपा के नेता – वेट एंड वाच् की नीति पर कार्य कर रहे थे ! दुबारा भ्रष्टाचार के विरुद्ध जब जनता सड़क पर उतरी उस समय भी भाजपा सक्रिय नहीं हुई , दिल्ली में दामिनी के साथ हुई घटना पर जब सम्पूर्ण देश आंदोलित हो गया जनता सड़क पर उतर आई तब भी भाजपा वेट एंड वाच ही् करती रही ! भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई के लिए भाजपा स्वयं को प्रतिबद्ध् बताती रही और अध्यक्ष सहित अनेक नेता भ्रष्टाचार में लिप्त रहे ! रथ निकलता रहा रैलियाँ होती रही और नेपथ्य में भ्रष्टाचार भी फलता.फूलता रहा । चर्चा है कि ज्यादातर चुनाव क्षेत्रों से बसपा के उम्मीदवार भी लगभग तय हो चुके हैं! प्रदेश कांग्रेस ने भी मिशन 2014 का ताना-बाना बुन लिया है! कांग्रेस द्वारा तैयार किए गए ब्लू प्रिंट के अनुसार ही कांग्रेस अपने पक्ष में माहौल तैयार करने के लिए कार्यक्रम आयोजित करेगी.! राष्ट्रमंडल खेल, आदर्श हाउसिंग सोसायटी और 2-जी स्पेक्ट्रम हेलीकाप्टर जैसे घोटालों से कांग्रेस के प्रति जनता के विश्वास को जबरदस्त धक्का तो लगा ही है अलबत्ता महंगाई की मार ने तो आम आदमी के कटे घाव पर नमक छिड़कने का काम किया है।उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की खस्ताहाली की बानगी राहुल गांधी की इस माह अमे ठी और रायबरेलीे की यात्रा से भी दी जा सकती है, यहां पहली बार उन्हें काले झंडे दिखाए गए.लोगों की खरी-खोटी भी सुननी पडी! वैसेबीते 23 सालों में उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने इन सारी बडी पार्टियों कोएक-एक करके आजमाया है. हर बार उसे निराशा ही हाथ लगी है। प्रदेश मेंपूर्वकी मायावती सरकार ने सिर्फ स्मारकों पर ही बेशुमार धन खर्च नहीं किया बल्कि कुछ खास चहेते नेताओंव अधिकारियोंको भी मनमानी करने की आजादी दी। दरअसल, राजनीति और गवर्नेस का गणित अर्थशास्त्र से अलहदा होता है. बुंदेलखंड में किसानों की बदहाली, राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, सार्वजनिक धन की खुली लूट और जीवन स्तर में आती गिरावट जैसे बिंदुओं के बीच इस प्रदेश का आम मतदाता राजनीति और नौकरशाही की उपेक्षा का आईना बनकर सामने आता है.
राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन मेंहजारों करोड़ रुपये के भ्रष्टाचार की बात हो या खराब कामकाज की ऐसी कहानियां सिर्फ मायावती के शासन तक सीमित नही रहींप्रदेश की आम जनता के सामने तो ऐसी तस्वीर हमेशा सामने आती रही है. 1996 से पहले तक यह राज्य फंड की कमी से जूझता रहता था.लेकिन तेजी से भरते इसके खजाने ने राजनेताओं की भूख बढ़ा दी. भ्रष्ट नौकरशाही के साथ इनकी सांठगांठ इस हद तक पहुंच गयी, जहां शुद्धता, शिष्टाचार और इंसाफ के सिद्धांत कहीं बहुत पीछे छूट गये. भाजपा नेजहांसत्ता पाकर भ्रष्ट नेताओं को अपनी कैबिनेट में जगह दी.वही मायावती के पास अपने आधार को मजबूत करने का बेहतरीन मौका था. लेकिन वे भी चूक गयीं. यह जानकर कि राज्य का खजाना भरा हुआ है, उनकी खर्च करने की फितरत का कोई ठिकाना नहींरहा. उन्होंनेन केवल बेहतरीन जहाज और हेलीकॉप्टर ही खरीद बल्कि अपनी जूतियां भी मंगाने में हेलीकाप्टर का प्रयोग किया वे अपने कैबिनेट सहयोगियों से कभी-कभार ही संवाद करती थी. उन्होंने अपने आप को कुछ चुनिंदा नौकरशाहों के घेरे में कैद कर लिया. यही नौकरशाह प्रशासन चलाने लगे.वे सार्वजनिक तौर पर करोड़ों के नोटों से बनी माला पहनती रही, इस दलील के साथ कि वे दलितों और उपेक्षितों को समर्थ बना रही है उनकी तानाशाही और सनकी मिजाज को राजनीतिक चतुराई बताया जाता रहा.नोएडा ाजियाबाद में हजारों करोड़ रुपये के भूमि आबंटन पर सवाल खड़े होते रहे. कुछ गिने-चुने बिल्डर और रियल एस्टेट एजेंट की तरफदारी का आरोप लगता रहा. उनके आसपास घेरे डाले खड़ी नौकरशाहों की मंडली इसे झुठलाने की बेमानी कोशिश करती रही. यह कहते हुए कि ये आरोप दलित हितों के विरोधियों के दिमाग की उपज है। 2007की सर्वजन पार्टी, जो समाज के हर वर्ग को अपनी छतरी में लाने का दावा कर रही थी, फिर बहुजन यानी दलित तक सिमट गयी मतदाताओं नेफिर से मुलायम केबेटेके हाथ सत्ता की चाबी 2012 मेंसौप दी चूकि मतदाताओंके समक्ष और कोईविकल्प भी नही था भाजपा का राम मंदिर नारा कोरा हैयह बात भी यहां की जनता भाजपा को सत्ता देकर देख ही चुकी थी।2014 के आगामी संसदीय चुनाव की तस्वीर भी कुछ ऐसी ही हैमतदाता केसामने चुनने के लिए सही विकल्प नहीं है. लेकिन पहलू साफ है- यहां का युवा मतदाता एक निर्णायक भूमिका में दिख रहा है. यह मतदाता बाकी तीन पार्टियों की तुलना मेसपा कोबेहतर आंकता दिखाईदे रहा है।गौर तलब तो यह है की महंगाई और भ्रष्टाचार दोनों ही राष्ट्रीय मुद्दे हैं, जिनका सीधा सरोकार आम जनता से है, लिहाजा मौजूदा संकट से उबरने के लिए पार्टी कों होने जा रहे लोक सभा चुनाव में न केवल पापड़ ही बेलने पड़ेंगे बल्कि जमीनी हकीकत से भी रूबरू होना पड़ेगा.! ,.
सवाल यह उठता है कि अपनी ढपली-अपना राग अलापने वाले इन राजनीतिक दलों का आखिर आधार क्या है? राहुल गांधी कार्यकर्ताओं को दिलासा देने के लिए कितने भी भाषण दें, क्या कांग्रेस ब्राह्मणों, मुसलमानों और दलितों का वह त्रिकोणात्मक गठजोड़ बना पाएगी, जिसके बल पर उसने दशकों तक प्रदेश व देश पर राज किया है? क्या भाजपा के रणनीतिकारों ने यह पता लगा लिया है कि इस बार उन्हेराम मंदिर के नाम पर कौन वोट देगा? बसपा चुनाव की पेशबंदियां तो कर रही है, लेकिन उसके सामने प्रश्न यह है कि क्या इस बार भी उसे दलितों के ठोस वोट बैंक के अलावा ऊंची जातियों और मुसलमानों के वोट मिल पाएंगे ? दावा कोई कुछ भी करे, इनमें से किसी पार्टी के पास इन प्रश्नों के सटीक उत्तर नहीं हैं ! कांग्रेस की गुटबाजी केजरीवाल और अन्ना की चीख चिल्लाहट, आये दिन घोटालों में उजागर होते कांग्रेसी चेहरों ने कांग्रेस कोकमजोर करके रख दिया हैअब देखना यह है कि इस बार आगामी लोकसभा चुनाव में मतदाता किसेसिरमौर के काबिल समझता है और किसेनहीं!

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